Gwalior : टोपी बाजार दही मंडी में कारोबार की राह में पार्किंग बाधा | The State Halchal News
टोपी बाजार में दुकानदार व उनके कर्मचारी अपने वाहन बीच सड़क पर लाइन से खड़े करते हैं, वहीं दही मंडी के चौक में वाहनों की पार्किंग से बाजार तक पहुंचने का रास्ता ही जाम हो जाता है। विकल्प के तौर पर महाराज बाड़ा पर बनी पार्किंग भी अभी बंद पड़ी हुई है।
ग्वालियर। महानगर के हृदय स्थल महाराज बाड़ा के मुख्य बाजारों में शामिल टोपी बाजार और दही मंडी में अव्यवस्थित पार्किंग सबसे बड़ी समस्या है। इससे दुकानदारों का व्यापार प्रभावित होता है। नवरात्र प्रारंभ होने के साथ ही यहां खरीदारों की भीड़ पहुंचने लगी है और दीपावली नजदीक आते-आते यह और बढ़ेगी। ऐसे में पार्किंग की कमी के चलते बाजार का रास्ता संकरा होता जाएगा। टोपी बाजार में दुकानदार व उनके कर्मचारी अपने वाहन बीच सड़क पर लाइन से खड़े करते हैं, वहीं दही मंडी के चौक में वाहनों की पार्किंग से बाजार तक पहुंचने का रास्ता ही जाम हो जाता है। विकल्प के तौर पर महाराज बाड़ा पर बनी पार्किंग भी अभी बंद पड़ी हुई है।
आधा किमी दायरे में फैले दोनों बाजारों में तीन जनसुविधा केंद्र हैं, जिनमें से एक की हालत खराब है। वहीं महिलाओं के उपयोग के लिए जनसुविधा केंद्र है ही नहीं। व्यापारी लंबे समय से इसकी मांग कर रहे हैं, क्योंकि त्योहार पर खरीदारी के लिए अधिकतर महिलाएं ही पहुंचती हैं। ये समस्याएं दूर हों, तो बाजार के व्यापार में चार चांद लग जाएंगे।
शाही टोपियों से प्रसिद्ध हुआ टोपी बाजार, दही मंडी भी रियासतकालीन
जिस समय सिंधिया राजघराने के सदस्य गोरखी महल में रहा करते थे, उस समय सिर पर टोपी पहनना जरूरी माना जाता था। बिना टोपी पहने बाहर जाना अपमानजनक समझा जाता था। तभी से महाराज बाड़ा के पास टोपी बनाने वाले कारीगरों की दुकानें थीं। ये सिंधिया राजघराने के साथ ही उनके दरबारियों और सरदारों के लिए भी टोपी बनाते थे। धीरे-धीरे ये चलन कम होता चला गया और दूसरे व्यवसाय शुरू कर दिए। वहीं दही मंडी भी रियासत काल से चली आ रही है। यहां आज भी स्टेट टाइम की इमारतों में छोटी-छोटी दुकानें संचालित हैं।
बाजार की मुख्य समस्याएं
- दुकानों तक पहुंचने का रास्ता वाहनों की बेतरतीब पार्किंग से बाधित हो जाता है। खुद दुकानदार और उनके कर्मचारी भी रोड पर ही वाहन खड़े करते हैं।
- महिलाओं के उपयोग के लिए जनसुविधा केंद्र मौजूद नहीं है। पुरुषों के लिए बने शौचालय भी गंदे रहते हैं।
- त्योहार नजदीक आते ही फुटपाथियों की समस्या भी बढ़ जाती है।
शाही टोपियों से प्रसिद्ध हुआ टोपी बाजार, दही मंडी भी रियासतकालीन
जिस समय सिंधिया राजघराने के सदस्य गोरखी महल में रहा करते थे, उस समय सिर पर टोपी पहनना जरूरी माना जाता था। बिना टोपी पहने बाहर जाना अपमानजनक समझा जाता था। तभी से महाराज बाड़ा के पास टोपी बनाने वाले कारीगरों की दुकानें थीं। ये सिंधिया राजघराने के साथ ही उनके दरबारियों और सरदारों के लिए भी टोपी बनाते थे। धीरे-धीरे ये चलन कम होता चला गया और दूसरे व्यवसाय शुरू कर दिए। वहीं दही मंडी भी रियासत काल से चली आ रही है। यहां आज भी स्टेट टाइम की इमारतों में छोटी-छोटी दुकानें संचालित हैं।
व्यापारी ले संकल्प
- दुकानों के बाहर दो-दो डस्टबिन रखें। गीला-सूखा कचरा अलग-अलग डलवाएं।
- सीसीटीवी कैमरे लगवाएं और जरूरत पड़ने पर फुटेज साझा करें।
- अपनी व कर्मचारियों की गाड़ियां सड़क पर पार्क न करें।
- कास्मेटिक और गारमेंट कारोबारी रोड तक सामान न फैलाएं।
- खुले में गंदगी फैलाने वाले ग्राहकों को रोकें व उन्हें समझाइश दें।
- व्यापारी संघ द्वारा बनाए गए नियमों का स्वयं पालन करें और दूसरों से भी कराएं।
- टायलेट के लिए सुविधा केंद्र का ही उपयोग करें।
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